सच क्या है ?
हम इश्वर को पुजते है उनकी आरती उतारते है और पता नही हम धर्म और आस्था के नाम पर क्या क्या नही करते, पर यह सब करते क्यो है ? यह एक ऐसा सवाल है जिसका कोई एक जवाब नही होगा हर एक के अलग अलग जवाब होगें। कोई इश्वर को प्रसन्न करना चाहता है तो कोई आगे के जन्मो से मुक्ति चाहता है और कई लोग तो सिर्फ इस लिए इश्वर को पुजते है तथा मानते है क्योकि बाकी लोग यह सब कर रहे है।
इस देश में ऐसे सैकडो् धार्मिक स्थान है जहॉ पर हर वर्ष लाखों करोडो् लोग जाते है और आस्था के नाम करोडो् रूपयों की बौछार वहॉ लगी इश्वर की मुर्तियों पर करते है।
जैसे इस देश में सैकडो् तीर्थ स्थान है वहीं हजारो की संख्या में मंदिर भी है तथा हजारों की संख्या में साधु संत है जो कथाऐं करते है प्रवचन देते है लेकिन उन प्रवचनो को सुन कर कितने लोग अपनी जिदंगी में उन प्रवचनो या उनके सुनाये वेदो पुराणो की बातों को अपने जीवन धारण कर पाते है, शायद बहुत मुश्किल सवाल है पर हकीकत है की कोई नही । शायद इस सवाल का जवाब सब को चौंका देने वाला है लेकिन सच्चाई यही है । अगर लोग वेदो पुराणो और संतो की बात को मानते तो शायद इस देश की कुछ और ही तस्वीर सामने होती होती । संत हमेशा एक बात कहते है की कण कण में इश्वर है और इश्वर इन्सान के अन्दर है किन्तु लोग बार बार यह सुनने के बाद भी उन्हें मंदिरो और पत्थर की मुर्तियों में ढुंढ रहे है ।ऐसा नही है की मैं मुर्ति पुजा या तीर्थ स्थानो पर कोई सवाल खडा् कर रहा हुं पर क्या कहीं ये लिखा है कि आप इन्सानो से नफरत और बैर रख कर इश्वर की तरफ भागे। जब कण कण में इश्वर है और हर एक इन्सान में भगवान बसता है तो कभी सोचा की उस इन्सान की कद्र करनी चाहिये। हम एक तीर्थ स्थान पर जाते है और वहॉ से भगवान की मुर्तिया,मालाऐं और पता नही ऐसे ही कितने सामान हजारो रूपये खर्च कर खरीदते है जो पहले से ही हमारे पास होता है पर कभी ये नही देखा की वहॉ और हमारे आसपास कितने लोग शाम को भुखे सोते है और पता नही कितने लोग सर्दी,गर्मी और बारिस की वजह से इस दिखावे की दुनिया को छोड् जाते है । पर हमें इस की क्या परवाह हम तो इश्वर को उस मुर्तियों,मंदिरो और तीर्थ स्थानों में ढुंढ रहे है उस इन्सान में नही जो भुख और सर्दी गर्मी से दम तोड् रहा है। भगवान के लिए हमने इतने मंदिर बनवाए और उन्ही के लिए लड् रहे खुन बहा रहे है पर कितने जरूरतमंद इन्सानो को घर बनावा कर दिये या उनके घर को टुटने से बचाने के लिए खुन तो छोडिये हमने पसिना भी बहाया हो जिसमें वास्तव में इश्वर का निवास है । हम हर वर्ष जाते है तीर्थो पर स्नान कर अपने पाप धोने व उनसे मुक्ति पाने लेकिन क्या ऐसे लोगो के पाप धुलते है जो ऑखों वाले अन्धे बने हुए है ? सच क्या है ? क्या हम वास्तव में इश्वर को चाहते है या उसे पाने का दिखावा कर रहे है? क्या हम अपने आप को धोखा तो नही दे रहे है ऐसा करके ? वास्तव में जिस घर में भगवान रहता है उसे हम तोड् कर अगले जन्मो से छुटकारा पाने की कोशिस तो नही कर रहे है ? सच क्या है ?
No comments:
Post a Comment